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Mithilesh Tiwari "maithili"

Abstract

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Mithilesh Tiwari "maithili"

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सरिता

सरिता

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कहां से तुम आई

और कहां को जाओगी ।

भेद न कोई पाया

क्या तुमने खोया क्या पाया ।

बस बहती रहती हो

सब सहती रहती हो ।

कभी शांत धारा सी

कभी चंचल पारा सी ।

छोड़ अपने गर्भ गेह को

चली आप्लावित करने धरा गेह को ।

सबको तुम अमृत पिलाती

कण कण की प्यास बुझाती ।

निज तट पर उर्वरा फैलाती

पर जीवन में खुशहाली लाती ।

तृण तृण की तुम हो जीवनी

करती स्पंदन बन संजीवनी ।

तुम सह्रदय सरस स्वाती हो

पर बदले में क्या पाती हो ।

गंदगी जमाने की

बेपरवाहगी अपनों की ।

क्या समझेगा कोई

तुम्हारे त्याग की भाषा ।

क्या कर पाएगा कोई

तुम्हारे सत्कर्मों की परिभाषा ।

हां कहते हैं सब तुमको सरिता

बहती कवियों के अंतः में बन कविता ।

हो तुम निस्वार्थ भाव की सजग मूर्ति

भरती पल -प्रतिपल नूतन स्फूर्ति ।।


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