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Vimla Jain

Action Classics Children

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Vimla Jain

Action Classics Children

सर्दियों के सुनहरे दिन

सर्दियों के सुनहरे दिन

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सर्दी आई, सर्दी आई, कड़कड़ाती सर्दी आई।

 साथ में बहुत बड़ा यादों का खजाना लाई।

 क्या समय था जब घर के सब लोग एक कमरे में

बैठ बीच में अलाव की सिगड़ी जलाते थे ।


साथ में सारी सब्जियां पत्ते वाली सब्जियां

थोड़ी थोड़ी करके सब को दी जाती और सब साफ करने बैठ जाते थे।

 दुनिया भर की बातें होती थी अलाव की सिगड़ी के कारण ठंड तो दूर भाग जाती थी।

फिर रसोई में चारों तरफ से बंद दरवाजे कहीं से ठंडी हवा ना आए।

सब बैठ अपने आसन पर मां के हाथ की गरम गरम

रोटले कभी बाजरी कभी मकई के खाते थे।

ऊपर घी की सोंधी खुशबू साथ में होता गुड बहुत मजे से खाते थे ।


एक दूसरे को चिड़ा चिड़ा कर जोर जोर से हंसते थे।

मां की डांट के पड़ने पर भी बहुत हंसी आ जाती थी।

 हमारे साथ वेभी हंस जाती थी।

बहुत सुहावने होते थे वे दिन 

गर्म गर्म सोंधी सोंधी खुशबू वाली शकरकंदी कभी-कभी बाटी कुछ नहीं तो

आलू ही सिगड़ी में पका हुआ इतना अच्छा लगता था।

आज के बारबेक्यूनेशन मे सिके आलू तो उसके सामने कुछ नहीं।


उस जमाने में दिखावट नहीं मगर सब सीधा साधा था।

मां बापू भाइयों के साथ बैठकर हमने सर्दी का बहुत मजा उठाया था 

सर्दी के खाने बहुत खाए।

 सर्दी के गाने बहुत गाये ।

कड़कड़ाती ठंडी में घूमने भी हम जाते थे ।

घर आकर के हम डांट भी बहुत खाते थे।

क्योंकि वैसलीन लगाना हमको अच्छा नहीं लगता था।

और हाथ पांव गाल तो बहुत बहुत फट जाते थे


कभी-कभी तो जलन भी होती थी,

तो मां का पकड़ कर वैसलीन लगाना आज बहुत याद आता है।

वह सर्दी का जमाना बहुत याद आता है।

 क्या बचपन के दिन थे सब कहते अगर विमला ने स्वेटर पहना तो सर्दी आ गई

नहीं तो कोई सर्दी नहीं ये खाली हमारे लिएहै।

 असली सर्दी तो तभी आती है जब विमला स्वेटर पहनती है।

वो कोहरा वह ठंडी हवाएं, वह सर्द धूप,

बहुत याद आती है।


 दिन पूरा धूप में निकल जाता था ।और रात सोने तक अलाव में।

 उसके बाद रजाई में ।

क्या सर्दी के दिनथे वे बचपन के दिन। सुहानी यादों से भरे बचपन के दिन।


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