सफल
सफल
जब तलक न होगा,सफल
लोग देते रहेंगे,यूँही दख़ल
जिसदिन हो गया,तू सफल
तेरे अपने ही लेंगे,दल-बदल
यही है,इस जगत का छल
अकेला करे,सफलता जल
जितना चढ़ेगा,तू न शिखर
उतना कम होगा,पीछे दल
सब सगे-सबंधी पीछे छूटेंगे
जितना तेज धार होगा,नल
जब तलक न होगा,सफल
लोग देते रहेंगे,यूँही दखल
जिसदिन पहुंचेगा,फ़लक
अकेला ही होगा,उस पल
गर भूल से बना,चंद्र पूनम
हर नजर से होगा,ओझल
क्या खून रिश्ते,क्या मित्र?
सब छोड़ देंगे साथ,कमल
सफलता पानी है,शीतल
लोगो को लगता,गर्म जल
समय रहते खुद को तू बदल
सब,सगा होने का करते,छल
पर सच मे,जब होते सफल
सगे करते,पीछे,निंदा हरपल
यह तो बहुत घमंडी है,कुंतल
क्योंकि यह हो गया है,सफल
साखी तू इन दुष्टों की बातों से,
अपना दिल न दुःखाना,कोमल
लोग तो खाते है,जिस पत्तल
उसका ही चीर देते,वक्ष:स्थल
ऐसे लोगो से जरा,तू संभल
जो आस्तीन सर्प है,विषधर
चाहे बन तू गिरी जैसा अटल
अकेलापन न हर समस्या हल
तू भी सामाजिकता एक स्थल
खुद को बना ले तू बस,निर्मल
जितना बढ़ता है,वृक्ष तन स्थल
उतना विन्रम होकर देता है,फल
तू विन्रम हो पत्थर भी कह उठे
कितना शांत,शीतल,निर्झर जल।