सोच
सोच
मैंं अगर यूं ही लिखता रहा
मेरे शब्द
गीत कविता लेख
अगर बन गए
लोग उसको अपनी
अगर आंखों से पढ़ने लगे
शब्द मेरे अगर
उनकी जुबां पर चढ़ने लगे
तो कसम से किताबे छप जाएंगी
लोग अगर उनको गुनगुनाने लगे
तो कसम से
उनके दिल में मेरी
किताबें बन जाएंगी
मैंं कवि हूं या कवि की छवि हूं
मुझे पता नहीं
मगर एक बात बताता हूं
मैं कलम से
जहां रवि ना पहुंचे,
वहां कवि पहुंच जाता है
शब्द उसका जमाने की
हवा बताता है
मैं परितोष रख के
दिल में संतोष ये कहता हूं
मैं तो आपके प्यार में बस
यूं ही लिखता रहा
कवि ना बन जाऊं कहीं मैं
मेरे शब्द आपकी जुबां पर चढ़कर
किताबें ना बन जाए कहीं।