संवेन्दनशीलता
संवेन्दनशीलता
कहाँ है मानवता
कहाँ है संवेदनशीलता
चहुँ ओर बस भौतिकता
क्या यही है आधुनिकता
समय समाज सब कुछ बदला
मानव अपना मौलिक स्वभाव भी भूला
चेहरे पर उदासीनता
छिन्न भिन्न मानसिकता
गुम हुई मानवता
दम तोड़ती संवेदनशीलता
बिखरे रिश्ते टूटते भाईचारे
घर टूटा, टूटे मानव बेचारे
अपनो ने ही दिखाई संवेदनहीनता
किसलिए क्यों कर ये हीनता
हर ओर हाहाकार
लोभ मोह अहंकार
कुछ पल सोचे,विचारे हम
किस ओर जा रहे हम
रोक ले स्वयम को संवेदहीन होने से
युक्त करे स्वयं को दैवीय गुणों से
मानव होकर मानवता न गुमाये
संवेदनशीलता को अपनाये।