संत रविदास
संत रविदास
एक चमकीला तारा ऊंचे आसमान,
रवि करे समूचे विश्व को प्रकाशमान।
एक चमकीला तारा नीचे आसमान,
सारे विश्व में किया मानवता का जागरण।
तेजस्वी, अध्यात्मिक संत का मातृभूमि पर आगमन,
अपने ज्ञान वाणी से संसार को किया प्रकाशमान।
कालसा देवी के कोख से जन्मा बालक निपुण,
सांस्कृतिक केंद्र वाराणसी नगरी की बढ़ी शान।
रवि दास के वाणी ने फूंकी बहुजनों में जान,
पाखंड, अंधविश्वास, कुरीति , कर्मकांड,
वर्ण व्यवस्था, जातीय श्रेष्ठता, छुआछूत, अस्पृशता,
आडंबरों से ग्रसित था देश का मूल निवासी बहुजन।
संत रविदास के ज्ञान गंगा और जागरण,
कर्मकांडी, पांखंडी षड्यंत्रकारियों की बंद पड़ी दुकान।
मानव-धर्म प्रचारक की संत रवीकी रही पहचान,
गुरु ग्रंथ साहेब में रवि वाणी के हैं गुन-गान।
दास-साहित्य में निरगुना-सगुना का तत्वज्ञान,
वर्ण, जात-पात, ये हैं पाखंडी धर्म पंडितों के अवगुन।
सभी मनुष्य में प्रकृति के समान अंश और गुन,
ऊंच- नीचता का भेदभाव मानवता पर काला लांछन।
शुद्र-पुत्र कह के ब्राह्मणों ने किया अपमान,
अपने ज्ञान वाणी से पंडितों को किया निष्प्राण।
संत ने अपने कर्म से किया बहुजनों का उत्थान,
विश्व गुरु का स्थान पाने का रचा कीर्तिमान।