संबल
संबल
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मुस्कानों की तेरी, सपनों की तेरे,
कीमत जो अदा की गयी !
सिर तेरा ऊंचा बना रहे,
इस अदा से, अदा की गयी !
सिसकियाँ गूंजती रही,
घिरी चारदीवारी में,
एक सबल अबला रोती रही, रात भर !
ताजी सुबह की रोशनी,
विश्वास से भरपूर तेरी नजरे
इसके पीछे अंधेरे में कोई खड़ा है,
संबल बन कर तेरा !
भूल गया क्यों तू,
शक्ति तेरी, तेरी अर्धांगिनी,
दुर्गा रूप खड़ी हैं !
करती संहार दुःख रूपी दानवों का,
खुशियों का थाल लिये खड़ी है !