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arun gode

Inspirational

4  

arun gode

Inspirational

संभाजी

संभाजी

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राजमाता जिजाऊ और छ्त्रपती शिवाजी की थी जुबान,

संभाजी होगा शिवाजी के बाद स्वराज के राजन।

संभालेंगें शाहजी के मराठा साम्राज्य की कमान,

क्योंकि संभाजी था सर्वगुनसंपन्न और शक्तिमान।


छ्त्रपती शिवाजी के ऊत्तराधीकारी का होना सिंहासनासीन,

स्वराज्य के जनता को चाहिए था,राजा शक्तिमान।

संभाजी जैसा शुर-विर,पराक्रमि बहुजन प्रतिपालक और बलवान।

जनता की भलाई के कार्य के प्रति भावनाप्रधान,

वो था,शुर-विर,पराक्रमी शिवा का जेष्ठ सपुत महान।


शुर-वीर, पराक्रमी छावा था वो संभाजी,

राज माता जीजाऊ और शिवा का शिष्य था वो गुनवान।

बचपन में हि तपकर बना था वह सोना,

भाषा,कला,विद्या,योध्दा और साहस का अनमोल खजाना।


बालि उम्र में हि दिग्गज दुश्मनों का तोडा सपना,

वैदिक मनुवादियों लिए कठीन था करना सामना।

संभा के लिए षड्यंत्रकारियों ने चुनी डगर अवमान,

फैलायां चारोतरफ,दुर्वचन और विषवमन।


पल-पल पर झुठे आरोपों का गाया तराना,

संभा को जलील, हत्तोसाहित करने का अभियान।

अनुज राजारामराजे को बनाना था कठपुतलि राजन,

स्वराज्य की असली सत्ता रहे ब्राम्हनों के अधीन।


संभाजी को वंचित किया पिता के अंतिम संस्कार व दर्शन,

मनुवादियों ने रोका संभाजी का राजतिलक प्रयोजन।

अपने कौशल,अनुभव और सुज-भुज से चलायां अभियान,

नत मस्तक किया सभी षड्यंत्रकारियों को करके आक्रमण।

षड्यंत्रकारियों का विफल किया गुप्त अभियान,

स्वराज के छत्रपती सिंहासन पर खुद हुयें सिंहासनासीन।


बचपन में ही लिख डाला संस्कृत में राजनीति पर ग्रंथ बुध्दभूषण,

नाभिकाभेद ,नखशिखा, सातसतक हिंदी ग्रंथों का किया अदभुत लिखान।

संस्कृत अन्य भाषा,युध्दकौशल, कुटनीति का था उच्चकोटी ज्ञान,

देखकर संस्कृत पंडित गागा भट्ट हुंआ हैरान।


संभाजी के आगे खुदको महसुस किया गौण,

माहारथी के सामने पंडित रहा मौण।

शिवाजी के राज्याभिषेक का करना था आयोजन,

कुटिल वैदिक पंडितों ने राज्याभिषेक में लाया व्यवधान।


शुद्र शिवाजी नहीं बन सकते स्वराज्य के राजन,

संभाजीने धर्मानुसार,तर्क-वितर्क से गागा भट्ट का किया समाधान।

जिवन भर निभायां एक भार्या प्रण,

भवानी और शिवाजी ,माहारानी येसु ने जन्में दो संतान।


लेकिन वैदिक विचारधारी कर्मकांडीयों ने लगायें और रचायें,

चरित्रहीनता, मदिराबाज और अय्याशी राजा के लांछन।

शिवाजी ने रचा इतिहास अपने स्वराज में लेकर खुद ही संज्ञान,

छत्रपती शिवाजीने चलाया अपने पुत्र पर मुकदमा न्यायालियन।


आरोपकर्ते सिध्द नहिं कर पाये अपने लांछन,

बेदाग छुटे संभाजी, और बच गई महाराणी येसु के प्राण।

षड्यंत्रकारियों का विफल हुआ देशद्रोह अभियान,

बनी रही शिवाजी की आन –बान और शान।


संभाजी का एक मात्र लक्ष ,स्वराज्य का बढाना है वतन,

हर किंमत पर सीमाओं का करना है जतन।

उसके लिए था ,एक मात्र, अदभुत उत्तर दिग्विजय अभीयान,

पहिली पहेल थी, बरहानपुर लुट और जंजीरा आक्रमण।

आलमगिर औंरंगजेब के हत्या की साजिश नहीं हो सकी मुमकिन,

खुदा ने दिया बादशाहा को संभासे लढने के लिए जीवनदान।


सेना को किया, आधुनिक, सशत्र और निपुन,

थल,घोडदल और नौसेना का था अनोखा मिश्रन।

शिवाजी के पद कमलों पर चलकर, शत्रु पर किया आक्रमण,

गनिमी कावां से दुश्मन-सेना को किया लहु-लुहान।

आलमगिर औंरंगजेब की मिटाई शान और घटाई पहचान,

संभाजीके स्वराज्य के लिये औंरंगाबाद में त्यागे बादशाहाने प्राण।


षड्यंत्रकारियों का आखिर सफल हुआ अभियान,

संभाजी को मिली कैद और योध्दा की तरह दिए प्राण।

बादशाहाने संभाजी को क्रुर,निर्मम मृत्युदंड का सुनायां फर्मान,

हसते-हसते संभाजीने त्यागे अपने स्वराज्य के लिए प्राण।

संभाजी थे शुर-वीर, पराक्रमी ,स्वाभीमानी योध्दा महान,

आलमगिर से नहिं मांगा जीवनदान।


मनुवादी कलाकार ,कवि और लेखकोने, संभाजी पर किया भद्दा लिखान,

नाटककारोंने अपने- अपने नाटको द्वारा किया निच बखान।

उन्होने बेचकर अपने- अपने धर्मों का ईमान,

भुल गयें वे, योध्दा ,विदवान और पथदर्शक के गाये जाते है गुनगान

करते आये है वे, बहुजन प्रतिपालक का पल –पल लेखनी से अपमान,

क्योंकि षड्यंत्रकारियों को मिटानी थी बहुजनों की ऐतिहासिक पहचान।


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