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Vaishno Khatri

Abstract

5.0  

Vaishno Khatri

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स्मृति

स्मृति

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367


चाँद छटा बिखेर रहा हर दम

सूर्य से मिल न पाता इक पल

मेरी तक़दीर में शायद तू नहीं

इसलिए मुझे शिकवा भी नहीं


तुम मेरे ख्यालों में आ जाओ

जीवन को रंगीन बना जाओ

तुम तो हो मेरे मन की धड़कन

मिले तो सजदा करुँगा हरदम


सबसे आकर्षक होते यह पल

प्रिये मेरा हृदय बड़ा है विकल

तप्त मन को कैसे समझाऊँगा

तुम्हारे बिन चैन कैसे पाऊँगा


कभी तो आ जाओ बहार बन 

मुझको मिलती नहीं तुम मगर

फिर से सपनों में आती अगर

अर्चना करूँगा प्रिये उमर भर


तुमसे कभी नयन न मिलाऊँगा

अनकही बातें तुम्हें न बताऊँगा

रखूँगा दबाकर हृदय के अंदर

तुमसे मैं जीवन भर छुपाऊँगा


तुम हो जाओ कान्हा सी चंचल

मैं भी राधा जैसा बन जाऊँगा

संग-संग चलूँगा संग ही नाचूँगा

मैं इक दिन मीरा बन जाऊँगा


ज़हर प्याला बन सकता अमृत

इतना विश्वास है कान्हा तुम पर

होगी मेरी चिंता तुमको हे सखा

वारी-वारी जाऊँगा मैं भी तुम पर



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