STORYMIRROR

Vikas Shahi

Abstract

3  

Vikas Shahi

Abstract

सकारात्मक जीवन

सकारात्मक जीवन

1 min
276

मुठ्ठी में रेत समेट कर

सपनों पर कच्चे मकान

कागज की कश्ती पर

सवार चलूँ पतझड़ समान


अनूठी रे फिर भी शान

अप्रकट भाग्य बड़ी बलवान

उम्मीद रथ पर आसीन चला

सारथी बनी प्रतिज्ञा है गुमान


क्यूँ हार का शोक रहे

जब जीत भी हो सुनसान

बसंत बहे हृदय रसे

बहकते पल में बड़ा अभिमान


ना किसी की आशा फिर भी

चंचल मन हर्षे धर उफान

जीवन भर पग धरा पकड़े

शीश छुए ऊंची आसमान!


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract