सजावट
सजावट
लोग कितना सजाते है,बदन को
लोग कितना सजाते है,चमन को
पर लोग नही सजाते है,मन को
गर सुधारना चाहते है,जीवन को
खूबसूरत बनाओ,भीतर जन को
जिसदिन सजाया,भीतर गगन को
तारे टिमटिमाएँगे,अंधेरे चमन को
जो शोलों पर सजाता,जीवन को
वो ही पाता है,शीतल शबनम को
जो छद्म आवरण से ढके तन को
वो कैसा खिलाये भीतर सुमन को?
भीतर बसाता है,ईर्ष्या,जलन को
वो कभी नही पाता है,अमन को
वही पाता है,यहां शांति चुंबन को
जो न करता है,मैला इस मन को
सजा साखी ऐसा अपने मन को
रिझा सके बालाजी के मन को
हरपल वो मन-मंदिर में रह सके
ऐसा बना पवित्र अपने मन को
सिर्फ़ बालाजी याद रहे,मन को
ऐसा सजा भीतर की पवन को
लोग यूं ही सजाते है,बदन को
जबकि ख़ाक होना,इस तन को
सजाये,नेकी कर्म से जीवन को
वो मूर्ख है,जो सजाते है,बदन को
यह माटी होगा,समझो जीवन को
रूप,यौवन उम्र होने पर ढल जायेगा
क्यों सजाते नष्ट होने वाले तन को?
तू यूं सजाना साखी अपने बदन को
इस जीवन में छू सके सत्य गगन को
ऐसी लगाना साखी अपनी लगन को
तू जला सके स्वाभिमान दीपक को
बाहर नही,बगुला सजाता जूं तन को
तू सजाना,कमल जैसे भीतर मन को
जो भले ही रहता है,कीच,दलदल को
पर मुस्कुराता,वो रखता सुंदर मन को
सब दुःख मिटता,जीवन का
वन,धन,दहन,भजन,वहन,
गलन,वीरन,मिलन,जगन,
जन,सुमन,शबनम,हवन,लगन
लोग कितना सजाते है,बदन को
लोग कितना सजाते है,चमन को
पर लोग नही सजाते है,मन को
गर सुधारना चाहते है,जीवन को
खूबसूरत बनाओ,भीतर जन को
जिसदिन सजाया,भीतर गगन को
तारे टिमटिमाएँगे,अंधेरे चमन को
जो शोलों पर सजाता,जीवन को
वो ही पाता है,शीतल शबनम को
जो छद्म आवरण से ढके तन को
वो कैसा खिलाये भीतर सुमन को?
भीतर बसाता है,ईर्ष्या,जलन को
वो कभी नही पाता है,अमन को
वही पाता है,यहां शांति चुंबन को
जो न करता है,मैला इस मन को
सजा साखी ऐसा अपने मन को
रिझा सके बालाजी के मन को
हरपल वो मन-मंदिर में रह सके
ऐसा बना पवित्र अपने मन को
सिर्फ़ बालाजी याद रहे,मन को
ऐसा सजा भीतर की पवन को
लोग यूं ही सजाते है,बदन को
जबकि ख़ाक होना,इस तन को
सजाये,नेकी कर्म से जीवन को
वो मूर्ख है,जो सजाते है,बदन को
यह माटी होगा,समझो जीवन को
रूप,यौवन उम्र होने पर ढल जायेगा
क्यों सजाते नष्ट होने वाले तन को?
तू यूं सजाना साखी अपने बदन को
इस जीवन में छू सके सत्य गगन को
ऐसी लगाना साखी अपनी लगन को
तू जला सके स्वाभिमान दीपक को
बाहर नही,बगुला सजाता जूं तन को
तू सजाना,कमल जैसे भीतर मन को
जो भले ही रहता है,कीच,दलदल को
पर मुस्कुराता,वो रखता सुंदर मन को ।