सियाराम के दोहे
सियाराम के दोहे
जीवन में सब देखते,पुण्य करो या पाप।
हरि को नहीं बिसारिये,भजिये उनको आप।।
सियाराम मेरे करें,उर में सदा निवास ।
मुझ जैसे नादान को,बना दिया है खास ।।
राम नाम से हो सदा,भव सागर से पार।
कठिन भवर है काल का,राम सके हैं तार।।
राम जब दुःख देत है,करवाते पहचान।
किसको अपना मानता,किसे पराया जान।।
चिंता सारी काटिये,ऐ दशरथ के लाल।
चरण शरण में लीजिये,कर दो मुझे निहाल।।
राम राम कहता रहूँ,यह मन में अभिलाष।
राम शरण में ही रहूँ,जीवन की यह आस।।
आज तलक मन कह रहा,सुन लो प्रभू पुकार।
राम नाम बिन क्या यहाँ,जीवन को धिक्कार।।
कह 'सुओम' कैसे मिले,दीनबंधु दातार।
कण कण में वो ही बसे,जिनसे हमको प्यार।।