सिर्फ लाल
सिर्फ लाल
मेरी माँ ने एक बार कहा था,
बेटे जहाँ स्वतंत्र का झंडा,फहराया जाये,
15 अगस्त को, वहां उस जश्न मे मत जाना,
उस झंडे के नीचे मत जाना, ये सफेदपोश,
उस झंडे को दागदार कर दिये है,
हर साल इसकी छाया में,
इसके साथ बलात्कार करते है,
जर्जर बना दिये है इसे, अब टूटने ही वाली है -
यह आजादी ! सुनो बेटे! यह सुनो बेटे!
सुनो - यह गीत किसी कवि का है -
"बाहर न जाओ सैया, यह हिन्दुस्तान हमारा,
रहने को घर नहीं है, सारा जहाँ हमारा है",
रेडियो पर सुनते ही यह गीत,
मैं ठठा कर हँसा था, और माँ से कसम लिया था -
जब तक मैं मुखौटे नोचकर,
इनका असली रूप / तुम्हारे सामने, नही रखूँगा,
लानत होगी मेरी जवानी की,
धिक्कार होगा मेरे खून का,
इस झण्डे को, अब बिल्कुल लाल करना होगा माँ,
तुम मुझ मे साहस भरो, लाल क्रांति का
आहवान दे रही है माँ, ताकि तिरंगे के नीचे कोई रंग न हो,
कोई रंगरेलिया न हो, इसे एक रंग मे रंगना होगा,
एक रंग मे सिर्फ लाल, सिर्फ लाल माँ !
सिर्फ लाल _