सीप का मोती
सीप का मोती
सीप का मोती मैं नहीं हूँ,
ना जल में कैद मछली
पिंजरे में कैद हो जाऊं
वो पंछी भी नहीं,
हाथों से फ़िसल जाऊँ
वो रेत भी नहीं।
माना मेरा सफ़र
फूलों की सेज नहीं,
पर पथरीली डगरों से मैं
डगमगा जाऊँ,
इतनी कमज़ोर नहीं।
जाने कितने ही रिश्तों की
डोर से बंधी हूँ,
जाने कितने ही जिम्मेदारियों को
साथ लेकर चली हूँ।
पर उनसे घबरा जाऊँ
इतनी नाज़ुक नहीं।
सीप का मोती मैं नहीं,
ना जल में कैद हुई मछली,
मातृत्व का सफ़र आसान नहीं है,
प्रेम से तो मुझे उसे भी सजाना है,
लेकिन मेरे बेहतर
भविष्य की रंगोली को
खूबसूरत रंगों से मुझे ही बनाना है।
सफर में बहाने तो बहुत मिलेंगे,
मुश्किलों भरे अंधरे भी साथ होंगे,
कहते है सोना तपता है तभी निखरता है
ऐसी तपन से गुजर कर
मुझे खुद को सोना बनाना है।