"सीख रहा हूं,दुनियादारी"
"सीख रहा हूं,दुनियादारी"
सीख रहा हूं,मैं भी अब दुनियादारी
सीख रहा हूं,कैसी होती है,लाचारी
एक झूठ को भी खरा सच बता देना,
सीख रहा हूं,मैं भी झूठी होशियारी
टूट जाती है,कभी-कभी जंजीर भी,
लोहे पर लग जाती,जब जंग बीमारी
सीख रहा हूं,मैं भी अब दुनियादारी
सीख रहा हूं,कैसे चलाऊं तलवारी?
अपनों के बीच चुभती चारदीवारी
शबनम को दे रही,अंगार बहुत भारी
कैसे मैं सबको यहां पर खुश रखूं?
कैसे अपनों को यहां पर संतुष्ट रखूं?
सीख रहा हूं,मैं भी झूठी कलाकारी
सीख रहा हूं,मैं कैसे घट रखूं कटारी
सीख रहा हूं,मैं भी अब दुनियादारी
सीख रहा हूं,दिखावा दुनिया सारी
आ गई अब ठोकरों से समझदारी
व्यर्थ है,बिना स्वार्थ सब रिश्तेदारी
क्या माता-पिता,क्या पत्नी हमारी
सब रिश्ते मैं,छाई आज दुनियादारी
सीख रहा हूं,मैं भी दिखावा सिंगारी
पर खोने न दूंगा स्वाभिमान क्यारी
चाहे पग-पग पर मिले,शूल हजारी
सीख रहा हूं,मैं भी अब दुनियादारी
पर सदा रहूंगा,मैं सत्य किलकारी
प्रह्लाद की भांति है,मेरी भी तैयारी
धर्म के खातिर तोड़ दूंगा हदे सारी
मुझ है,बालाजी की भक्ति खुमारी
सीख रहा हूं,भले ही मैं दुनियादारी
पर न छोडूंगा कभी अच्छाई हमारी
दुष्टों के बीच रहूंगा,बनकर हाहाकारी
मैं हूं,जग कीच का कमल प्रलयंकारी
सीखूंगा बस इतनी ही दुनियादारी
जिससे बनी रहे प्राकृतिकता हमारी
जिससे आत्मा पर बोझ न पड़े हमारी
आटे मैं नमक सी चाहिए दुनियादारी।
