Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

anuradha jain

Abstract

4.1  

anuradha jain

Abstract

शून्य

शून्य

1 min
166


घूमते चुंबक के शून्य पर घूमता 

मैं एक सूक्ष्म हूं,

सोचता हूं, पत्तों पर बैठी ओस,

ओस से मिलती किरण,

किरण से झगड़ती लहर,

लहरों पर घुमड़ते मन के हज़ारों खयाल,

ख़्याल की परतों में छिपा,

मन का वो एक सूक्ष्म भाव, 

सब शून्य हो जाएं

ताकि इस परिधियों को नए,

शून्य के नए सिरे से नाप सकूँ।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract