शून्य
शून्य
घूमते चुंबक के शून्य पर घूमता
मैं एक सूक्ष्म हूं,
सोचता हूं, पत्तों पर बैठी ओस,
ओस से मिलती किरण,
किरण से झगड़ती लहर,
लहरों पर घुमड़ते मन के हज़ारों खयाल,
ख़्याल की परतों में छिपा,
मन का वो एक सूक्ष्म भाव,
सब शून्य हो जाएं
ताकि इस परिधियों को नए,
शून्य के नए सिरे से नाप सकूँ।