श्रम स्वेद कणों की महिमा
श्रम स्वेद कणों की महिमा
ईश्वर की कृति का तू पोषण करे जगत में
इस हेतु पूर्ति हेतु, ईश्वर ऋणी है तेरा
श्रम स्वेद कणों का तेरे, ये देश ऋणी मेरा।
तू धूप में जलता है, शीत में गलाता तन है
हर ऋतु से कर युद्ध, विजित करता तू अन्न है
अट्टालिका विशाल में धन के अतुल भंडार भी
उजड़ते अन्न बिन, न बस सके कोई बसेरा।
श्रम स्वेद कणों का तेरे, ये देश ऋणी मेरा।
स्कंध पर निर्भर है तेरे, देश की समृद्धि
बूंदे तेरे पसीने की, उपजाऊ करें धरती
उर्वक धरा से होता प्रकट, स्वर्ण अन्नरूपी
शोभित मां भारती के भाल, स्वेद तिलक तेरा।
श्रम स्वेद कणों का तेरे, ये देश ऋणी मेरा।
तू है मेरी इस मातृभूमि का सपूत सच्चा
तू भूख के दानव से करता है हमारी रक्षा
कठोर श्रम तेरा करे मानव की क्षुधापूर्ति
जब जागता है तू, तभी धरती पे हो सवेरा।
श्रम स्वेद कणों का तेरे, ये देश ऋणी मेरा।
तू पुत्र, प्रेमी, सखा और पिता है इस धरा का
हर रूप तेरा धरा का अद्भुत श्रृंगार रचता
बंजर धरा की गोद भी तेरा प्रताप भर दे
हरियाली के सुंदर स्वरूप का है तू चितेरा।
श्रम स्वेद कणों का तेरे, ये देश ऋणी मेरा।
साधक है तू औ साधना तेरी बड़ी कठिन है
तेरे ही तप से उर्जित हमारे रातदिन हैं
उपज तेरे श्रम की हमारे प्राण करती पोषित
है आत्मनिर्भर तेरे कर्म से ये देश मेरा।
श्रम स्वेद कणों का तेरे, ये देश ऋणी मेरा।
हे व्योम पे विराज परमशक्ति परमेश्वर
कृषक के कष्टों का तू, पूर्ण अब शमन कर
स्व अंत न करे कृषक कोई प्राण अपने
उर के इसी उद्गार से पूजन करें हम तेरा।
श्रम स्वेद कणों का तेरे, ये देश ऋणी मेरा।
