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Ajay Singla

Classics

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Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -७८; महाराज पृथु को सनकादि का उपदेश

श्रीमद्भागवत -७८; महाराज पृथु को सनकादि का उपदेश

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राजा पृथु से प्रार्थना कर रहे 

जब प्रजाजन इस प्रकार से 

तभी सूर्य के समान तेजस्वी 

चार मुनीश्वर वहां प्रकट हुए।


राजा ने जब ये देखा कि 

सनकादि आकाश से आ रहे 

दौड़े दौड़े गए पास में उनके 

आसन दिया, पूजा की उन्होंने।


बड़ी श्रद्धा से हाथ जोड़कर 

प्रेमपूर्वक तब उनसे ये कहा 

धन्य भाग मेरे हैं जो 

आपका दर्शन प्राप्त हुआ।


समस्त लोकों में आप विचरते 

अनाधिकारी कोई देख न पाता 

सब जीवों के सहृदय आप हैं 

आपसे मैं ये पूछना चाहता।


संसार में जो भी मनुष्य हैं 

कल्याण हो सकता कैसे उनका 

हरि ने कृपा की आपको भेजा 

आप भी एक रूप भगवान का।


मैत्रेय जी कहें पृथु के वचन सुन 

सनत्कुमार प्रसन्न हो गए 

राजा को आशीर्वाद दिया 

मुस्कुराकर वो कहने लगे।


राजन, आप जानें हैं सब कुछ 

फिर भी कल्याण के लिए प्रजा के 

बड़ी अच्छी ये बात पूछी है 

आप ने अपनी सदबुद्धि से।


गुनानवाद में हरि चरणों के 

आपकी अविचल प्रीती है 

जो इसको प्राप्त कर लेता 

वासना उसकी नष्ट होती है।


शास्त्रों ने भी है कहा कि 

देहादि से वैराग्य कर लो 

और निर्गुण परब्रह्म से 

तुम सुदृढ़ अनुराग कर लो।


यही कल्याण का निश्चित साधन है 

शास्त्रों ने है और कहा ये 

भगवतधर्मों का आचरण करो तुम 

ज्ञानयोग की निष्ठा से | 


श्री हरी की उपासना करो 

सुनो कथाओं को, भगवान की 

धर्म नियमों का पालन करो 

 निंदा न करो कभी किसी की।


हरि के गुणों का वर्णन करने से 

वैराग्य हो जाता मनुष्य को 

अनायास प्राप्ति हो जाती 

निर्गुण परब्रह्म की उसको।


दुःख सुख शरीर का या भीतर का 

वो उन सब को नहीं देखता 

धन, इन्द्रियों के विषय में चिंतन 

पुरुषार्थों का नाश है करता।


इसलिए अगर इ

च्छा हो 

पार होने की अज्ञानान्धकार से 

 मनुष्य को चाहिए कि वो 

विषयों में आसक्ति न करे।


धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष 

प्राप्ति में ये बड़ी बाधक है 

इन चार पुरुषार्थों में 

मोक्ष को श्रेष्ठ माना जाता है।


मोक्ष के सिवा बाकी पुरुषार्थ जो 

सर्वदा काल का भय लगा रहे 

भगवान का पूजन तुम करते रहो 

वो तुम्हे अपनी भक्ति देंगे।


उपदेश पाकर सनत्कुमार से 

पृथु प्रशंसा करने लगे उनकी 

कहें, भगवन श्री हरि ने 

जो मुझपर पहले कृपा की थी।


उसी को पूर्ण करने के लिए 

आप लोग हैं यहाँ पधारे 

सनकादि की पूजा की उन्होंने 

ऋषि भी उनकी प्रशंशा कर रहे।


फिर सभी लोगों के सामने 

मुनि आकाशमार्ग से चले गए 

उपदेश पाकर महाराज पृथु भी 

कृतकृत्य सा अनुभव करने लगे।


विषयों में आसक्त न हुए 

अनुसरण कर सभी कर्तव्यों का 

अपनी भार्या अर्चि के गर्भ से 

पांच पुत्रों को उत्पन्न किया।


विजितावश, धूम्रकेश, हर्यक्ष 

द्रविण और वृक नाम के 

प्रजा की रक्षा के लिए पृथु जी 

धारण करते गुण लोकपालों के।


तेज से अग्नि समान वो 

इंद्र का समान अजय थे 

क्षमाशील पृथ्वी के समान वो 

स्वर्ग के समान कामनाएं पूर्ण करें।


गंभीर समुन्द्र के समान वो 

धैर्यवान समान सुमेरु के 

धर्मराज के समान वो 

दुष्टों का दमन करने में।


आश्चर्यपूर्ण वस्तुओं के संग्रह में 

वो समान थे हिमालय के 

कबीर के समान थे वो राजा 

कोष की समृद्धि करने में।


धन को छिपाने में वरुण समान थे 

शरीरिकबल, पराक्रम में वायु से 

तेज में शंकर समान थे 

सौंदर्य में वो कामदेव से।


उत्साह में सिंह के समान 

जीवों के अधिपत्य में ब्रह्मा समान वो 

उनकी नीति का मान करें 

सभी लोग त्रिलोकी में जो।


 



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