श्रीमद्भागवत -७७; भगवान पृथु का अपनी प्रजा को उपदेश
श्रीमद्भागवत -७७; भगवान पृथु का अपनी प्रजा को उपदेश
जब महाराज थे नगर पधारे
स्तुति की उनकी वन्दीजनों ने
बहुत सजा सारा नगर था
राजा ने प्रवेश किया राजमहल में ।
सब के पूजनीय थे राजा
पृथु ने पृथ्वी पर शासन किया
उदार कर्म करते, यश पाकर
भगवान का परमपद प्राप्त किया ।
विदुर जी कहें कि हे ब्राह्मण अब
पृथु के और चरित्र सुनाईये
राजा पृथु ने और क्या किया
विस्तार से सब मुझे बताईये ।
मैत्रेय जी कहें कि हे विदुर जी
राज्य पृथ्वी पर किया उन्होंने
एक बार एक महासत्र की
भी दीक्षा ली थी उन्होंने ।
देवता, ब्रह्मर्षि, राजर्षि सब
बहुत लोग एकत्रित हुए थे
दीक्षा के नियमानुसार उन्होंने
समस्त आभूषण उतार दिए थे ।
उससे उनके शरीर की शोभा
बढ़ गयी थी और भी ज्यादा
शीतल और स्नेहपूर्वक नेत्रों से
देखकर फिर उन्होंने कहा ।
राजा का परलोक में हित हो
इसलिए आप सब को ये चाहिए
भगवान को स्मृति में रखते हुए
कर्तव्यों का पालन कीजिये ।
कर्मों का फल देने वाले
भगवान यज्ञपती ही एक हैं
जिनके चरणकमल ही सब की
कामनाएं पूर्ण करते हैं ।
इस पृथ्वी पर मेरे जो प्रजाजन
भगवान हरि का पूजन करते
और धर्मों का पालन जो करें
सब मुझपर बड़ी क
ृपा हैं करते ।
आप सभी को सब प्रकार से
सेवा ब्राह्मण की करनी चाहिए
गुरुजनों की जो सेवा करते
मिल जातीं सारी सम्पदायें ।
मेरी भी ये अभिलाषा है
मुझपर सदा प्रसन्न रहे ये
ब्राह्मणकुल, गोवंश, भक्त
और भगवन श्री हरि मेरे ।
ये कथन सुनकर पृथु के
प्रसन्न हुए ब्राह्मण और देवता
पृथु की प्रशंशा करने लगे
उन्होंने था फिर पृथु से कहा ।
पुत्र के द्वारा पिता भी
पुण्यलोक को प्राप्त हो गया
मारा गया जो मुनिओं के शाप से
वेन भी नर्क से निरुत्तर हो गया ।
आपके पुण्यों ने उसे बचाया
ऐसे ही हिरण्यकशपु भी था
जो नरकों में गया क्योंकि
भगवान की वो निंदा करता था ।
पुत्र प्रह्लाद के प्रभाव से
उन नरकों को पार कर गया
पुत्र के पुण्यों के कारण
पिता को पुण्यलोक मिल गया ।
अविचल भक्ति आपकी हरि में
आप तो पृथ्वी के पिता हैं
सुयश आपका बड़ा पवित्र
हरि कथा का प्रसार करते हैं ।
हमारा बड़ा सौभाग्य है कि
महाराज हैं आप हमारे
नमस्कार हम करें आपको
प्रजा की रक्षा करने वाले ।