Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!
Unlock solutions to your love life challenges, from choosing the right partner to navigating deception and loneliness, with the book "Lust Love & Liberation ". Click here to get your copy!

Ajay Singla

Classics

4  

Ajay Singla

Classics

श्रीमद्भागवत -७७; भगवान पृथु का अपनी प्रजा को उपदेश

श्रीमद्भागवत -७७; भगवान पृथु का अपनी प्रजा को उपदेश

2 mins
271



जब महाराज थे नगर पधारे 

स्तुति की उनकी वन्दीजनों ने 

बहुत सजा सारा नगर था 

राजा ने प्रवेश किया राजमहल में । 


सब के पूजनीय थे राजा 

पृथु ने पृथ्वी पर शासन किया 

उदार कर्म करते, यश पाकर 

भगवान का परमपद प्राप्त किया । 


विदुर जी कहें कि हे ब्राह्मण अब 

पृथु के और चरित्र सुनाईये 

राजा पृथु ने और क्या किया 

विस्तार से सब मुझे बताईये । 


मैत्रेय जी कहें कि हे विदुर जी 

राज्य पृथ्वी पर किया उन्होंने 

एक बार एक महासत्र की 

भी दीक्षा ली थी उन्होंने । 


देवता, ब्रह्मर्षि, राजर्षि सब 

बहुत लोग एकत्रित हुए थे 

दीक्षा के नियमानुसार उन्होंने 

समस्त आभूषण उतार दिए थे । 


उससे उनके शरीर की शोभा 

बढ़ गयी थी और भी ज्यादा 

शीतल और स्नेहपूर्वक नेत्रों से 

देखकर फिर उन्होंने कहा । 


राजा का परलोक में हित हो 

इसलिए आप सब को ये चाहिए 

भगवान को स्मृति में रखते हुए 

कर्तव्यों का पालन कीजिये । 


कर्मों का फल देने वाले 

भगवान यज्ञपती ही एक हैं 

जिनके चरणकमल ही सब की 

कामनाएं पूर्ण करते हैं । 


इस पृथ्वी पर मेरे जो प्रजाजन 

भगवान हरि का पूजन करते 

और धर्मों का पालन जो करें 

सब मुझपर बड़ी कृपा हैं करते । 


आप सभी को सब प्रकार से 

सेवा ब्राह्मण की करनी चाहिए 

गुरुजनों की जो सेवा करते 

मिल जातीं सारी सम्पदायें । 


मेरी भी ये अभिलाषा है 

मुझपर सदा प्रसन्न रहे ये 

ब्राह्मणकुल, गोवंश, भक्त 

और भगवन श्री हरि मेरे । 


ये कथन सुनकर पृथु के 

प्रसन्न हुए ब्राह्मण और देवता 

पृथु की प्रशंशा करने लगे 

उन्होंने था फिर पृथु से कहा । 


पुत्र के द्वारा पिता भी 

पुण्यलोक को प्राप्त हो गया 

मारा गया जो मुनिओं के शाप से 

वेन भी नर्क से निरुत्तर हो गया । 


आपके पुण्यों ने उसे बचाया 

ऐसे ही हिरण्यकशपु भी था 

जो नरकों में गया क्योंकि 

भगवान की वो निंदा करता था । 


पुत्र प्रह्लाद के प्रभाव से 

उन नरकों को पार कर गया 

पुत्र के पुण्यों के कारण 

पिता को पुण्यलोक मिल गया । 


अविचल भक्ति आपकी हरि में 

आप तो पृथ्वी के पिता हैं 

सुयश आपका बड़ा पवित्र 

हरि कथा का प्रसार करते हैं । 


हमारा बड़ा सौभाग्य है कि 

महाराज हैं आप हमारे 

नमस्कार हम करें आपको 

प्रजा की रक्षा करने वाले । 















Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Classics