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Ajay Singla

Classics

4.3  

Ajay Singla

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श्रीमद्भागवत -५२ ;भक्ति का मर्म और काल की महिमा

श्रीमद्भागवत -५२ ;भक्ति का मर्म और काल की महिमा

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देवहूति पूछें कपिल जी से कि 

प्रकृति, पुरुष और महतत्वआदि का

लक्षण जैसे सांख्योग ने बताया 

आपने मुझसे वो सब कहा। 


अब आप मुझे भक्तियोग का

मार्ग विस्तारपूर्वक बतलायें 

जीवों की गतिअन क्या होतीं

काल का स्वरुप सुनाएं।


मैत्रेय जी कहें, हे विदुर जी

मनोहर वचन सुन माता के

कपिल जी कहें कि भक्ति योग का

प्रकाश होता अनेक प्रकार से।


जो क्रोधी पुरुष ह्रदय में

हिंसा, दम्भ का भाव रखते हैं

इसी भाव से प्रेम करें मुझे

वो मेरे तामस भक्त हैं।


विषय, यश और ऐश्वर्य की

वासनाओं को रखकर मन में

जो पुरुष मेरी पूजा करता

वो मेरा राजस भक्त है।


पापों का क्षय करने के लिए

परमात्मा की पूजा करते जो

मुझे सबकुछ अर्पण कर दे 

सात्विक भक्त मेरा है वो।


अनन्य, निष्काम प्रेम और

मुझसे जो प्रीती करता है

ये निर्गुण भक्त मेरे का

एक लक्षण माना गया है।


निष्काम भक्त ऐसे होते हैं

जो सिर्फ मेरी सेवा लेते

अगर उनको मिल भी रहा हो

मोक्ष तक वो छोड़ हैं देते।


ऐसे भक्तियोग को ही हम

परमपुरुषार्थ या साध्य कहते

इसके द्वारा ही पुरुष वो

मेरे स्वरुप को प्राप्त करते।


जो पुरुष है वैर बांधता 

दुसरे जीवों से द्वेष करे जो 

मैं विद्यामान हर एक शरीर में 

मुझसे भी तब द्वेष करे वो। 


मन की शांति न मिल सके उसको 

मैं कभी प्रसन्न न उससे 

जो करे अपमान जीवों का 

ना पा सके कृपा कभी मुझसे। 


मनुष्य धर्म का अनुष्ठान करे 

तब तक मेरी पूजा करता रहे 

ह्रदय में उसे प्राणीओं में स्थित 

परमात्मा का अनुभव ना हो जाये। 


भक्तियोग, अष्टांगयोग का 

वर्णन सब कपिल जी ने कर दिया 

कहें पुरुष भगवान को पा ले जो 

अनुसरण करे एक भी साधन का। 


जिससे पुरुष को सदा भय रहता 

वो काल भी भगवान का ही स्वरुप है 

यही समस्त प्राणीओं का संहार करे 

प्रकृति और पुरुष भी इसी के रूप हैं। 


भगवान काल ही विष्णु हैं 

यज्ञों का फल यही देतें हैं 

ना कोई शत्रु, मित्र, सम्बन्धी 

यह सर्वथा सजग रहतें है। 


भोगरूप प्रमाद में पड़े प्राणीओं पर 

आक्रमण करता, संहार करता है 

इसी के भय से वायु चले और 

सूर्य इसी के भय से तपता है। 


इंद्र वर्षा करे है भय से 

इसके भय से तारे भीं चमकें 

इस के भय से नदियां हैं बहतीं 

समुन्द्र रहता है मर्यादा में। 


स्वयं ये काल अनादि है पर 

दूसरों का आदि करता है 

स्वयं अनंत होकर भी ये 

दूसरों का अंत करता है। 


पिता से पुत्र की उत्पत्ति करे 

सारे जगत की रचना करता 

संहार शक्ति मृत्यु के द्वारा 

यमराज का भी अंत कर देता। 








 







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