श्रीमद्भागवत -३०; विदुर जी के प्रशन और मैत्रेय जी का सृष्टि का वर्णन
श्रीमद्भागवत -३०; विदुर जी के प्रशन और मैत्रेय जी का सृष्टि का वर्णन
परम ज्ञानी मैत्रेय मुनि जी
हरिद्वारक्षेत्र में विराजमान थे
विदुर जी पहुँचे, प्रणाम किया उन्हें
पूछे ये प्रशन थे उनसे ।
मनुष्य लोग संसार में सारे
सुख के लिए कर्म हैं करते
उससे ही दुःख की वृद्धि होती ।
दुःख को कर्म ये कम नहीं करते ।
उस साधन का उपदेश दीजिए
उचित कर्म जो करना चाहिए
इस विषय में ज्ञान दीजिए
कृपा कर सब आप बताइए ।
जिस आराधना से प्रभु अपने
भक्तों के हृदय में विराजमान हों
ज्ञान प्रदान फिर करें वो उनको
भक्त भी तब प्रभु समान हों।
श्री हरि जो भी अवतार लें
नित्त नयी जो लीला करते
अकर्ता होकर भी वो प्रभु
इस सृष्टि की रचना करते ।
जीने का विधान भी करें
फिर अपने में लीन करें वो
वैसे तो वो सिर्फ़ एक हैं
पर अनेकों रूप धरे वो ।
रहस्य ये सब हमें बताइए
भगवान रूपों की कथा सुनाएँ
जिनके चिंतन से हैं कहते
सभी दुखों का अंत हो जाए ।
मैत्रेय जी कहें, हे विदुर जी
ओरस पुत्र व्यास के आप हैं
प्रजा को दंड जो देने वाले
यम भगवान स्वयं आप हैं ।
भगवान को आप प्रिय बहुत हैं
इसीलिए निज धाम जाते हुए
आप को ज्ञान उपदेश देने को
वो मुझ को थे आज्ञा दे गए ।
उनकी आज्ञा का पालन करने
आप को मैं वो सब वर्णन करूँ
प्रभु ने विभिन्न जो लीलाएँ कीं
उन सब को मैं मन में अब धरूँ ।
सृष्टि रचना के पूर्व एक ही
पूर्ण रूप परमात्मा वो थे
माया से फिर सब उत्पन्न किया
पृथ्वी, आकाश, देवगण प्रकट हुए ।
देवगण जो भगवान के अंश हैं
भगवान की उन्होंने स्तुति की थी तब
निर्गुणमय हमें रचा है
आपस में मिल ना पाएँ हम ।
ब्रह्माण्ड की रचना करने को
हम सब हैं असमर्थ हो रहे
आप ही कोई उपाय कीजिए
आज्ञा मानें हम जो आप कहें ।
ब्रह्माण्ड की रचना करने के लिए
क्रिया शक्ति हमें प्रदान करें
ज्ञान भी हम माँगें आपसे
ताकि काम हम ये कर सकें ।