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Deepa Dingolia

Abstract

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Deepa Dingolia

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शिकन

शिकन

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आग बरस रही 

आज फिर 

ऊपर देखा उसने

नए जोश और नयी उमंग से 

सब सामान सजाया उसने।


दो बूँद गिरीं

माथे से उसके 

आटे में मिल गयीं 

गरमा - गरम रोटियां 

लोगों के 

हलक में 

उतर गयीं।


तगड़ी धूप

गर्मी 

बदन से उसके

बह-बह कर रिसती।


गर्मी से बेहाल सभी 

पर माथे पर 

उसके 

कोई शिकन नहीं थी।


कुछ बूँदें

गिरतीं यहाँ-वहां 

और 

सांझ तक 

ये बूँदें 

उसकी सिक्कों में 

बदल गयीं।


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