शिकन
शिकन
आग बरस रही
आज फिर
ऊपर देखा उसने
नए जोश और नयी उमंग से
सब सामान सजाया उसने।
दो बूँद गिरीं
माथे से उसके
आटे में मिल गयीं
गरमा - गरम रोटियां
लोगों के
हलक में
उतर गयीं।
तगड़ी धूप
गर्मी
बदन से उसके
बह-बह कर रिसती।
गर्मी से बेहाल सभी
पर माथे पर
उसके
कोई शिकन नहीं थी।
कुछ बूँदें
गिरतीं यहाँ-वहां
और
सांझ तक
ये बूँदें
उसकी सिक्कों में
बदल गयीं।