शीर्षक:गौरेया
शीर्षक:गौरेया
विलुप्त होती गौरेया दिवस
आज वृक्ष नहीं मिलते
जंगल में चहकते पक्षी नहीं मिलते
पीपल के बड़े वृक्ष नहीं मिलते
आज गौरेया के घोंसले नहीं मिलते
कंकरीट के जंगल चारों तरफ यहाँ अब है मिलते
हर तरफ मानव की लूट के निशान मिलते
फायदे के लिए काटे जंगल, पेड़ अब नहीं मिलते
इसलिए ही तो गौरैया की जगह कबूतर हैं मिलते
अब गौरेया का अस्तित्व खतरे में ही दिखता
मानव तो बस पैसों की दौड़ में लगा दिखता
गौरेया के अस्तित्व का अब हल नहीं दिखता
अब तो कहीं भी गौरेया का रूप ही नहीं दिखता।