शहीद
शहीद
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हो गयी थी शहादत देश के नाम,
वह शहीद हो गया था,
था तिरंगे में लिपटा शरीर हर कोई रो रहा था,
आये थे अंतिम संस्कार में कई गणमान्य जन,
आश्वासनों का पुलिंदा हर कोई दे रहा था,
था परिवार शोक-संत्पत आगे कैसे चलेगी घर की गाड़ी यही सोच रहा था,
न थी कोई जमा-पूंजी बेटा ही घर खींच रहा था,
दिख रहा था उनको भविष्य अंधेरा परिवार यही सोच रहा था,
थी शहादत उनके लिए अर्थहीन,
खोकर उसे परिवार के लिए मुफ़लसी का दौर शुरू हो रहा था।