शबे-ए-बारात
शबे-ए-बारात
इबादत की होती है,जो रात
कहते हैं ,उसे शबे-ए-बारात
गुनाहों से करते हैं ,सब तौबा
ख़ुदा हमे दे सजदे का मौका
मुँह से न निकले बुरी बात
सबको मुबारक शबे-ए-बारात
हृदय में हो अच्छे जज़्बात
बदी की खत्म हो जाये जात
करते रहो इबादत हर रात
खुदा से जल्द होगी मुलाकात
पावन बेला की आई है,रात
रमज़ान से पहले आती है,
इसलिये कहते इसे शबे बरात
गुनाहों की मांगते माफी रब से,
रख दे सर पे रहमोकरम हाथ
बुराई को देता तू सदा ही मात
तू देता खुदा सदा नेकी का साथ
एक दिन क्या,रोज सजदा करेंगे
तू है करोड़ों सूर्य का जज्बात
झूठ-फ़रेब के खट्टे हो जाते दांत
तेरी इबादत में है,बड़ी करामात
सबको मुबारक हो शबे बारात!