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सफ़रनामा

सफ़रनामा

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हर डगर में कांटे हैं

कोई सफ़र आसान नहीं

हर कश्ती कश्मकश में है

किस दरिया में तूफ़ान नहीं।।

कोई हंस हंस कर ज़ख्म सहे

कोई अश्रु के घूँट पिए

रोने वाला कमज़ोर नहीं

हँसने वाला महान नहीं।।

कोई सफ़र आसान नहीं

किस दरिया में तूफ़ान नहीं।।

सब मंज़िल के राही हैं

सब चाहते एक हमराही हैं

सबकी एक कहानी है

जिसकी कोई पहचान नहीं।।

ना है ये कारवां अपना

अपना कोई इंसान नहीं

ये राहें, मंज़िल सब झूठी हैं

फिर भी कोई हैरान नहीं।।

कोई सफ़र आसान नहीं

किस दरिया में तूफ़ान नहीं।।

बस एक सफ़र ही सच्चा है

क्यों तुझको ये पहचान नहीं

ये जग लोग सब मोह माया है

यहां बचा कोई इंसान नहीं।।

मंज़िल के सौदाई सुन

यहाँ कोई मुकम्म्मल जहान नहीं

हर पल तुझको चलना ही है

रुकते मुर्दे है, इंसान नहीं।।

कोई सफ़र आसान नहीं,

किस दरिया में तूफ़ान नहीं।।

कोई गिरता है, संभालता है

लेकिन हर पल को चलता है

सब कुछ सफ़र ही है तो फिर

क्यों सफ़र का तू कदरदान नहीं।।

माना मंज़िल भी आएँगी

कुछ राहें छूट भी जाएंगी

लोग बिछड़ के कहाँ ही जाते हैं

फिर यादों में मिल जाते हैं

सब संग चलें ये कब मुमकिन है

बिछड़ना ही सफ़र की मंज़िल है

यहाँ, सब कुछ पाकर खोना है

बस इसी बात का रोना है

चलते रहना आसान नहीं

मंज़िलें सफ़र की पहचान नहीं

किस दरिया में तूफान नहीं

कोई सफ़र आसान नहीं।।


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