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Shagufta Quazi

Romance

4  

Shagufta Quazi

Romance

"सच अच्छे लगते हो मुझे"

"सच अच्छे लगते हो मुझे"

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229



प्यार भरी एक निगाह से

तुम मुझे जब निहारते हो

सच अच्छे लगते हो मुझे

ग़लती पर जब एक मेरी

भृकुटियां तनती तुम्हारी 

घूरती आँखे जब डराती

बुरा लगता है तब मुझे

आलिंगन में जब भरते हो

समा के बाहों में तुम्हारी

पा लेती हूं खुशियां सारी

सच अच्छे लगते हो मुझे

प्यार का स्पर्श जब तुम्हारा

ज़ुल्फ़ों को छूती उंगलियां

लेती है सौ-सौ बलईयां

सारे जहां की खुशियों से

झोली भरती है जब मेरी

सच अच्छे लगते हो मुझे

ग़लती पर जब-जब मेरी 

 उंगली उठती है तुम्हारी

बुरा लगता है तब मुझे

तुम्हारी हर ख़ुशी में

ढूँढ़ लेती हूं अपनी ख़ुशी।

 ख़ुशी में जब तुम मेरी

मीन मेख़ निकलते हो

बुरा लगता है तब मुझे

गाड़ी के दो पहियों से

समांतर चलते जब संग

सच अच्छे लगते हो मुझे

 एक क़दम आगे मुझ से

चलते हो जब पछाड़ कर

बुरा लगता है तब मुझे

ख्वाहिशें तुम्हारी सारी

बिन कहे जान लेती हूं

खुश होते हो जब मुझसे 

सच अच्छे लगते हो मुझे

जान कर ख्वाहिशें मेरी

बनते हो जब अनजान

बुरा लगता है तब मुझे

ज़िंदगी तुम्हारी ख़ातिर

लगा दी मैनें दांव पर

मुस्कुराते हुए स्वीकारते

इस गुण का जब मेरे

करते रहते गुणगान हो

सच अच्छे लगते हो मुझे

वक़्त ज़रा सा जब माँगूँ

बहाने बनाते हो हज़ार

बुरा लगता है तब मुझे

जो हो ,जैसे हो,मेरे हो

स्वीकार किया दिल से तुम्हें

मेरी अच्छी आदतों का

करते जब सम्मान हो 

सच अच्छे लगते हो मुझे

सौ ख़ूबियों में मेरी

एक ख़ामी जब गिनाते 

सौ सौ बार कहते बात वही

सच बुरा लगता तब मुझे

पर----पर - - -- पर

सच अच्छे लगते हो मुझे

सच अच्छे लगते हो मुझे - - - --

 

   


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