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सब ठीक है

सब ठीक है

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कल शाम को बगल वाली गुप्ता आँटी मिली थीं,

जानना चाहती थी कि क्या हम दोनों

अब साथ नही रहते।

पूछ रहीं थी,

"बेटा, क्या सब ठीक है ?"

मैं कोई जवाब न दे सकी


कैसे समझाती मैं उनको,

कि तुम्हारी गली से खरीदा हुआ बिंदी का पत्ता

आज भी संभाल कर रखा है,


जब भी वो बिंदी लगाती हूँ तो लगता है

तुम ऑफिस जाने से पहले मेरा माथा चूम रहे हो।

तुम्हारा पसंदीदा नीले रंग का दुप्पटा ओढ़कर,

आज भी तुम्हारे गले लगने का एहसास होता है।


अलमारी में रखी तुम्हारे परफ्यूम की आधी बोतल,

आज भी तुम्हारी मौजूदगी महसूस कराती है।

तुम्हे वो हार्ट शेप वाला पत्थर याद है,

जिस पर तुमने अपना नाम लिखकर मुझे दिया था ?


मेरे ऑफिस डेस्क पर अब पेपर वेट का काम करता है,

वेट पेपर पर है या दिल पर,

यह बताना थोड़ा मुश्किल है।


पिछले हफ्ते तुम सिगेरट की दुकान पर दिखे,

उदास से लग रहे थे,

मन तो बहुत हुआ कि आकर "हेलो" ही बोल दूँ,

मगर रिक्शेवाला बहुत समझदार था,

वक़्त रहते उसने रिक्शा दौड़ा दी।


कैसे बताती यह सब गुप्ता आँटी को ?

कैसे समझाती साथ रहने और साथ होने का फर्क ?

बस मैं हल्के से मुस्कुरायी और कहा,

"जी आँटी, सब ठीक है।"


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