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Minal Aggarwal

Abstract

4  

Minal Aggarwal

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सब पैसे की दुनिया है

सब पैसे की दुनिया है

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244


पैसे की खनक 

जिसके कानों में गहरी उतर जाती है 

उसे फिर अपने ही परिवार के आंगन में लगे 

फूलों के पौधों से बू आती है 

उसे अपने मां बाप और 

भाई बहिन लगते हैं 


अपने सिर पर रखा 

एक पहाड़ सा बोझ कोई और 

अपनी पत्नी, अपने बच्चे,

अपना ससुराल, अपनी मित्र मंडली,

अपने अड़ोसी पड़ोसी 

अपने से और 

अपना एक संसार 

वह अपना सारा पैसा 


अपना सारा समय 

अपनी सारी ऊर्जा 

अपने सारे संसाधन 

अपनी सारी शक्ति 

इनपर लुटाने लगता है 


इसके बदले जो मिलती है वाहवाही 

उससे फूला नहीं समाता है 

इस कड़वे सच को 

भूल जाता है कि 

यह सब उसके पैसे के 

वैभव के 

धनसंपदा के मित्र हैं 


अभी कोई विपत्ति आ पड़े 

उसके सिर तो 

सब मैदान छोड़कर भाग जायेंगे 

एक बार आजमाकर देख ले 

इन सबको 


एक दफा बस एक दफा 

इनपर अपना पैसा बर्बाद मत कर 

इनके कहने पर न चल 

कोई फिजूलखर्ची न कर 

पैसे की बर्बादी को रोकने की हिम्मत 


जुटा फिर देख 

यह सब मिलकर तुझे कैसे पीटते हैं 

बर्बाद करते हैं 

तुझे नंगा करके बीच सड़क पर जो 

डंडे से न पीटे तो 

मेरा नाम बदल देना 


इन सबका असली रंग तो तब 

सामने आता है 

जब आदमी गरीब होता है 

और उसके हाथ में पैसा नहीं होता है 

जो रिश्ते पैसे की मांग करते 

रहते हों 


उसे पूरा न करने पर 

रूठते हों 

तुम्हें तंग करते हों और 

रिश्ते को टूटने की कगार पर ले 

आते हों 


ऐसे लोग भला कहां अपने हुए 

सब पैसे की दुनिया है 

पैसे की माया है 

पैसे की हवस है सबको 

पैसे के बिना भी कोई 

तुम्हें पूछता हो 


प्यार करता हो 

मान देता हो 

रिश्ता जोड़ने लायक 

प्यार पाने या इज्जत के 

लायक वही है कोई दूसरा नहीं।


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