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Ranjeet Singh

Abstract

4  

Ranjeet Singh

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सब दोस्त थकने लगे है

सब दोस्त थकने लगे है

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साथ-साथ जो खेले थे बचपन में,

वो सब दोस्त अब थकने लगे है,

किसी का पेट निकल आया है,

किसी के बाल पकने लगे है।


सब पर भारी ज़िम्मेदारी है,

सबको छोटी मोटी कोई बीमारी है,

दिनभर जो भागते दौड़ते थे,

वो अब चलते चलते भी रुकने लगे हैं,

उफ़ क्या क़यामत हैं,

सब दोस्त थकने लगे हैं।


किसी को लोन की फ़िक्र है,

कहीं हेल्थ टेस्ट का ज़िक्र है,

फुर्सत की सब को कमी है,

आँखों में अजीब सी नमीं है।


कल जो प्यार के ख़त लिखते थे,

आज बीमे के फार्म भरने में लगे है,

उफ़ क्या क़यामत हैं,

सब दोस्त थकने लगे हैं।


देख कर पुरानी तस्वीरें,

आज जी भर आता है,

क्या अजीब शै है ये वक़्त भी,

किस तरहा ये गुज़र जाता है,

कल का जवान दोस्त मेरा,

आज अधेड़ नज़र आता है।


कल के ख़्वाब सजाते थे जो कभी,

आज गुज़रे दिनों में खोने लगे हैं,

उफ़ क्या क़यामत हैं।


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