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Dhan Pati Singh Kushwaha

Abstract

4.5  

Dhan Pati Singh Kushwaha

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सौ इंसान की-एक भगवान की

सौ इंसान की-एक भगवान की

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बहुत उजाड़ी है हरियाली,

जो है वसुधा का आभूषण।

संसाधनों का करके भीषण शोषण,

हमने फैलाया है बहुत प्रदूषण।


आधुनिकता के नाम पर हमने,

मां का बेदर्दी चीरा है सीना।

क्रुद्ध प्रकृति ने क्रोध किया तब,


आज मुश्किल हो गया है जीना।

आज भयाक्रांत है सारी दुनिया,

अब इसे हो चुका है कई महीना।


बड़ी अनिश्चितता है सम्पूर्ण जगत में,

पता नहीं मुक्ति मिलेगी किस क्षण।

संसाधनों का करकेभीषण शोषण,

हमने फैलाया है बहुत प्रदूषण।


आज अफ़रा-तफ़री मची हुई है,

पूरी दुनिया के हर एक कोने में।

मगर धूर्तता कुछ दुष्ट दिखा रहे,


हाथ अवसर की गंगा में धोने में।

निर्देश न मानें कुछ अक्ल के अंधे,

उल्टा कर ये तो व्यस्त हैं रोने में।


भारतीय प्रयास सराहे गए जगत में,

वैश्विक नेतृत्व के हैं ये सब ही लक्षण।

संसाधनों का करके भीषण शोषण,

हमने फैलाया है बहुत प्रदूषण।


नटराज शंभु का चहुंदिश हो रहा है तांडव,

इससे आज है दशा प्रकृति की सुधर रही।

स्रोत धरणी-वरुण-समीर के सुधर रहे सब,


अति प्रफुल्लित सी लगती है सकल मही।

बदला अमानुषिक कृत्यों का ले रही प्रकृति ,

सुनार की सौ चोटों पर एक लोहार की यही सही।


चेतावनी प्रकृति देती रहती है समय-समय,

विस्मृत कर देता नर कर विलाप फिर ये क्षण।

संसाधनों का करके भीषण शोषण,

हमने फैलाया है बहुत प्रदूषण।


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