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Rita Jha

Abstract Classics Inspirational

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Rita Jha

Abstract Classics Inspirational

रविवार की सुबह

रविवार की सुबह

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रविवार की सुखद सुबह हुई

अलसाई सी है मगर आज भोर !

उठो !जागो ! मन में मच रहा शोर !

सप्ताह भर के काम है निपटाने

क्यों बिस्तर छोड़ने में हो रही देर !


शीत ऋतु ने भले अपनी पांव पसारे

रजाई कंबल को अब करो किनारे !

देखो बाहर कितने सुंदर है नज़ारे

भोर की लालिमा, बगिया में आ पुकारे !

ओस से नहाई प्रकृति के रूप निहारे !


झटपट मुँह हाथ धो कर आओ,

दांत किटकिटाए मगर मत घबराओ

गर्म चाय की प्याली सबको पकड़ाओ

आज नहीं है भगमभाग करने का दिन,

संग में मिल बैठकर चुस्की लगाओ !


रविवार की सुबह संग कुछ समय बिताओ

सुख दुख के किस्से मिलकर बतियाओ।

सबकी रुचि व जायका का नाश्ता लगाओ

संग साथ में पूरा परिवार मिलकर खाओ। 

खुशी का दिन है कुछ पल मौज मनाओ !


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