रूप सौंदर्य
रूप सौंदर्य
हे रूप सुंदरी कहां से हो और क्या शुभ नाम तुम्हारा है,
स्वर्ग लोक से लगती हो यह अनुमान हमारा है।
देखने वाला देखता होगा रूप तेरा मनमोहक सा,
जिस पर राधा नाचे थी उस मुरली के सम्मोहन सा।
है छटा बिखेर रहा सौंदर्य जिसका द्वितीय नहीं संभव,
गर एक बार सोचा जाए तुम जैसा मिलना ना संभव।
रूप तेरा ऐसा मानो एक हुस्न की रानी आई है,
लगता है प्रेम की वर्षा की वह नई कहानी लाई है।
उस प्रेम के मादकता विशेष की गरिमा की अनुकंपा है,
कुछ हुआ नहीं है अभी प्रिये उस बात की मुझको शंका है।
दूर तलक की सोच ने मुझको किस मंजिल पर घेरा है,
आगे बढ़ने की सोच नहीं बस चारों तरफ अंधेरा हैै।
मैं प्रेम की माला का मोती वह उस माला का धागा है,
यदि रहा इसी स्थिति में तो हृदय बड़ा अभागा है।

