रुखसत
रुखसत
मानो कल की ही बात है,उससे मिली थी मैं,
सिर्फ तन से ही नही ,मन से भी मुस्कुराई थी मैं।
एक नए उल्लास और खुशी का
सिलसिला सा चल पड़ा था जिन्दगी में।
इस कदर उसकी आगोश में खो गई थी मैं।
कुछ कदम तो साथ दिया था उसने मेरा,
कुछ कदम उसके साथ चली थी मैं।
फिर ना जाने क्यों सब कुछ बदलता सा गया,
वो किसी अनजान राह की ओर चल पड़ा।
मैंने भी पुकारना मुनासिब न समझा,
उसे जबरन पास बिठाना मुनासिब न समझा,
कर दिया कुर्बान उसकी मुस्कुराहट पर अपनी खुशी,
उसे उसकी मंज़िल से दूर करना मुनासिब न समझा।
कर दिया रुखसत दिल से उसकी यादों को,
मुड़ चुकी हूँ फिर से वहीं,शुरुआत जहां से उसने की थी
शायद मेरा अंत लिखा था वहीं।
अब दुबारा लौटना मुमकिन न होगा हमसे,
बार बार आँसू बहाना अब खलता है मुझे,
तू जा, जी ले तेरी जिंदगी के लम्हे ,तू जा जी ले तेरी जिंदगी के लम्हे ,
मेरी रुखसती से कोई रूबरू अब न करेगा तुझे।
जिंदगी से अपनी तू मुझे अलविदा कर तो देगा,
लेकिन अपनी यादों से रुखसत क्या कर सकेगा मुझे?
क्या अपनी यादों से रुखसत तू कर सकेगा मुझे?
