वक़्त
वक़्त
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ना जाने वक़्त क्यूँ रूठा सा लगता है मुझसे .
कभी अपना सा तो कभी बेगाना सा पेश आता है मुझसे।
कभी प्यार से सराबोर कर देता है मुझे, तो कभी तन्हा ,भटकता छोड़ देता है मुझे।
कोई गिला शिकवा नही है तुझसे ऐ गज़र,
बस कभी दो लम्हे सुकून के मेरे नाम कर दिया कर।
अपने दूर हुए जा रहे हैं, तू भी रेत की तरह मुठी से फिसल रहा है मेरे।
कभी थमने की चाहत हो तो,मेरी ओर रुख कर लेना,
बड़ी आरज़ू से टकटकी लगाए जो बैठी लम्हों को समेटतीदिखूँ ,तो प्यार से हाल जरूर पूछ लेना।
ऐ वक़्त तू मेरी तरफ अपनी बाहें जरूर फैलाना,
मै जी भरकर हसन और रोना चाहती हूँ।
एक तू ही मेरे जख्मों का मरहम जरूर बनना,
ऐ वक़्त मेरी ओर अपना रुख जरूर करना ।
