STORYMIRROR

Rekha Shukla

Abstract

3  

Rekha Shukla

Abstract

रंग कलम से बेहुदे

रंग कलम से बेहुदे

1 min
168


ड्युटी बियोन्ड डेथ, फिर भी कूहू कूहू बोलती कवितायें हैं ?

ओफ ध रेकोर्ड ट्रेझर ओफ ब्लेसींग्स मुस्काई सिल्की रचना है?


इद्गारॉ दोदारे दिल से उठे इबादत कोई ईजाजत सर पे हाथ है?

सरेआ, सुगलुलोत हुए अल्फाझ्म क्या चाहत बेनाम चातक की है?


अन्यमनस्क नजरें धुंधली, क्यां जिंदगी सब की गुलज़ार हैं ?

रंगकलम से डूबी कॄतियां, बदली मौसम में सरनामी मूर्तियां हैं ?


रुख्सत करे, अलबिदा कहे,अरे !! रूकावटें शान तख्तो ताज है 

दुरस्त करे, गौर फर्मायें, अल्फाजे मौन प्यासा हां ये राझ हैं


चूनाव, दंगा, रिश्वतखोर बेहूदे नारे, किसे समझाये आग हैं

ज़ख़्मी परिंदे सी आम जनता यहां, कैसी शान किसे नाज़ है! 



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract