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Mahesh Sharma Chilamchi

Abstract

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Mahesh Sharma Chilamchi

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रिश्तों की डोर

रिश्तों की डोर

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जीवन में,

आज हो रहा है, 

गैजिटों का शोर,

टीवी एसी कार और, 

मोबाइलों का जोर,

तकनीक से, 

न हार तू, 


इतना न हो कमजोर,

देख, 

टूट जाए ना,  

रिश्तों की ये डोर,

बच्चे क्या, 

बूढ़े बड़े, 

सब का ये हाल है,


चारों तरफ, 

मोबाइल का, 

मकड़ जाल है,

दूर रख तू खुशियों से, 

ख्यालों के चोर,

देख, 

टूट जाए ना, 

रिश्तों की ये डोर,


पश्चिम की,

सभ्यता ने,

हम पर डाला है डाका,

पोस्ट कार्ड ,

तार सभी,

कर रहे फाका,


घर आए अतिथि का,

बच्चे करें ना वंदन,

मोबाइलों में, 

घुसे पड़े,

लोग चारों ओर,


देख,

टूट जाए ना,  

रिश्तों की ये डोर,

ताऊ चाचा नाना बाबा,

भूल गए हैं,


मार्डन कहें दिमाग से,

पैदल वो भए हैं,

मेमोरियों से, 

फोन की,

निकलो मेरे प्यारो,

देखो सुहानी, 


कितनी,

हुई आज नभ में भोर,

देख,

टूट जाए ना,  

रिश्तों की ये डोर।


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