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कवि काव्यांश " यथार्थ "

Abstract Action Inspirational

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कवि काव्यांश " यथार्थ "

Abstract Action Inspirational

राष्ट्र के नाम समर्पित ।।

राष्ट्र के नाम समर्पित ।।

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राष्ट्र को समर्पित इस गीत में सोई हुई देश भक्ति को उजागर करने का प्रयास किया गया हैं, आज हमें और हमारे आने वाले भविष्य को बेहद जरूरी है अपनी भारत की सुरक्षा और उनकी आन बान और शान को बनाए रखने की। भारत माता की ओर कोई भी शत्रु अपनी निगेहबान उठाने का साहस न कर पाए।

"रानी लक्ष्मीबाई – राष्ट्र की पुकार"


(एक ही सोच,‌ एक ही भाषा
एक ही स्वर, एक ही भावना)

(एक भावनात्मक, प्रेरणात्मक प्रस्तुति कविता)


"एक रात… 
जब सब सो रहे थे… 
मैं भी था गहरी नींद में…
तभी स्वप्न में आईं… 
झाँसी की रानी… लक्ष्मीबाई…
और जो उन्होंने कहा… 
वहीं मेरे जीवन की दिशा बन गई…"

स्वप्न में आई, रानी लक्ष्मीबाई,
अंगार सी आंखों में ज्वाला लाई।
कहा – 
“क्या सो रहे हो,
 वीरों का वंश?
देखों, देश पुकारे, 
जागो, मत बनो तुम कंश।”

धूप से झुलसी धरती बोली,
“क्या अब भी मेरी पुकार
तेरा खून ना खोली?”
सींचा लहू से जिसने लिया धरती जीत,
क्या तुम भूल गए वों इतिहास के गीत?

कंधों पर थे जिनके तोपों के वार,
सीने में धड़कता था केवल भारत-संस्कार।
 कहने, आई थीं वों
 झांसी की रानी,
“अब राष्ट्र को चाहिए त्याग, समर्पण और कुर्बानी।”

ना तलवार चाहिए, 
ना घोड़े की सवारी,
आज कलम से ही होती 
है क्रांति सारी।
ईमानदार बनो, 
सच्चे नागरिक हो,
हर कर्म में राष्ट्र की छवि
दिखनी चाहिए दो।

माँ की ममता, 
बहन का मान,
हर नारी में लक्ष्मीबाई 
की पहचान।
युवा बनो ऐसे, 
जो समय से पहले जागे,
सपनों को हकीकत में अपने हाथों भागे।

मिट्टी की खुशबू में है
शहीदों का नाम,
हर सांसों में बसा है 
भारत का गुणगान।
तिरंगा उठाओ, 
उसे झुकने मत दो,
रक्त की लकीरों को,
व्यर्थ होने न दो।

जात पात भाषा-भेद 
को छोड़ो,
एक राष्ट्र, 
एक सोच में खुद को जोड़ो।
रोज़गार, शिक्षा, और नारी-सम्मान,
यही हो आज़ादी का असली अभियान।

कहा रानी ने,
“अब भी वक्त है तुम्हारे पास,
कर दो अंधेरों का विनाश।”
“मैं देख रही हूँ, राष्ट्र हित में
क्या करोगे तुम?”
“राष्ट्र के लिए जिओगे या
कहीं खो जाओगे तुम”


तब मेरी आत्मा बोली –
“हे वीरांगना, 
अब से तुम्हारे दिखाएं
पथ पर मैं चल पड़ा हूं,
आज से, मेरा प्रण हैं यही,
मैं जिऊंगा भी राष्ट्र हित में
मरूंगा भी, 
“भारत मां की सेवा में
मेरे प्राण न्यौछावर भी होंगे
बस यही मेरी अटल प्रतिज्ञा ही सही।”

जय हिन्द, जय भारत
वन्दे मातरम।।




स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित रचना लेखक :- कवि काव्यांश "यथार्थ"
         विरमगांव, गुजरात।



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