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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Abstract

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रिपुदमन झा "पिनाकी"

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रामराज्य अभी नहीं है

रामराज्य अभी नहीं है

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त्रेता के जननायक

प्रजापालक, मर्यादापुरुषोत्तम राम

जिन्होंने,

पिता के वचनों की लाज रखने को

माता कैकेयी की आज्ञा पर

जीवनसंगिनी सीता

तथा स्नेहमयी भ्राता लक्ष्मण जी के संग

चौदह वर्ष के कठिन वनवास पर

राज्य मोह त्याग कर

अयोध्या छोड़ चल दिये

असंख्य असहनीय पीड़ा को झेलते

प्रिय वैदेही का विछोह सहते

रावण वध कर

लंका विजय करते हुए

चौदह वर्ष के पश्चात

अयोध्या लौट कर जब

श्री राम ने राजसिंहासन संभाला

अयोध्या को समृद्धशाली बनाया

रामराज्य में प्रजा सुखी और खुशहाल हुई

विषाद, अशांति, द्वेष का नाम नहीं था

जाति, वर्ण, भेद का नामोनिशान नहीं था

अविश्वास, भ्रष्टाचार से अनभिज्ञ थे सब

राम जैसा पिता प्रजा ने पाया

प्रजा सुखी और संतुष्ट थी

किंतु अब

कहाँ गए वो रामराज्य?

कहाँ गए वो राम जैसे प्रजापालक

जिसने अपने प्रजाजनों के

मिथ्या आरोप पर 

यह जानते हुए

कि सीता निर्दोष है,

निष्कलंक है

अपने प्राणों से प्रिय सीता का

परित्याग कर दिया

उसे वनवास पर भेज दिया।

वनों में सीता जो जीवन जीती

वही जीवन राम ने भी जिया

वियोग में अश्रु बहाए

किंतु पत्नी मोह में

राज्य और प्रजा को

न दुःख दिये और न दोष

आज कहाँ है वो त्याग

कहाँ गए वो प्रेम भाव

कहाँ है वो रामराज्य की परिभाषा

जो रामराज्य में राम ने दिए

लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न जैसे भाईयों का

भ्रातृत्व प्रेम कहाँ है आज।

रामराज्य की कल्पना

क्या कल्पना ही रह जाएगी

क्या रामराज्य

केवल इतिहास बनकर रह जाएगा?

भ्रष्ट, और सत्तालोलुप प्रजापालकों वाली

इक्कीसवीं शताब्दी में,

प्रजाजनों के लिए

क्या रामराज्य

बस स्वप्न बनकर ही रह जाएगा?



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