राम मेरे हृदय में बस जाओ
राम मेरे हृदय में बस जाओ
राम मंदिर में बसो न बसो
मेरे ह्रदय में बस जाओ ।
अपना वो पितृ प्रेम थोड़ा सा सिखा जाओ
जहाँ मर्यादा है,आदर है और सम्मान की गंगा है
खुशी-खुशी पिता का मान रखने का गुण सिखा जाओ ।
राम मंदिर में बसो न बसो
मेरे ह्रदय में बस जाओ ।
अपना वो मातृत्व-भाव का भाव रखना सिखा जाओ ,
माँ की हर बात में ममता ढूँढने की कला सिखा जाओ,
माँ पूजा है, माँ ईश्वर है, माँ धरा की सर्वश्रेष्ठ कृति है ,
माँ मुख से नहीं, ह्रदय से कैसे बोलते हैं सिखा जाओ ।
राम मंदिर में बसो न बसो,
मेरे हृदय में बस जाओ ।
भाई से प्यार करने का वह समर्पण सिखा जाओ,
भाई सखा है,भाई आदरणीय है,भाई अपना शिशु-सा है
भाई के दुख-दर्द को अपना-सा महसूस कर
उस यम से टकरा भाई के संग जीना सिखा जाओ ।
राम मंदिर में बसो न बसो
मेरे हृदय में बस जाओ ।
मुझे भी आज्ञाकारी,समर्पित शिष्य बनना सिखा जाओ,
गुरु के यज्ञ की रक्षा,गुरु से प्रेमकर नतमस्तक होना सिखा जाओ,
नम हो शिक्षा ग्रहण की जाती, चाहे बैरी से ही क्यों न हो!
ये हुनर हर शिष्य को आकर सिखा जाओ ।
राम मंदिर में बसो न बसो
मेरे हृदय में बस जाओ ।
प्रेम की वो भाषा सिखा जाओ
जहाँ हृदय बिना कुछ बोले प्रिय की बात समझ जाए,
जहाँ एक संग रहने के लिए जंगलों की पीर सह सजाए ,
जहाँ काटों की सेज पर फूलों की अनुभूति का आनंद लेते जाए , जहाँ प्रिया का दामन जो छूए उसे मृत्युदंड दे जाए
जीवन संगनी के लिए हर सागर पार करना सिखा जाओ।
राम मंदिर में बसो न बसो
मेरे हृदय में बस जाओ ।
राजा हो रंक-सा रहना सिखा जाओ ,
प्रजा के दर्द को समझने वाला कलेजा हमें भी दे जाओ,
प्रजापति हो प्रजा के लिए त्याग करना सिखा जाओ
हे राम ! राज्य में प्रेम भाव से राज्य करना सीखा जाओ।
राम मंदिर में बसो न बसो
मेरे हृदय में बस जाओ ।
मेरे हृदय की राम-माला से
ये जग गुंजित हो, वह गुण सिखा जाओ,
तेरा नाम, दर्द में एक बार जपूँ
तो सुख में हर क्षण जपूँ, बस कुछ ऐसा मंत्र सिखा जाओ।
सृष्टि के हर कण में तुझे ही पाऊँ, तुझे ही ध्याऊँ
और सद कर्म करती चली जाऊँ,बस ऐसे कर्म सिखा जाओ।
राम मंदिर में बसो न बसो
मेरे हृदय में बस जाओ ।
इस भटकी हुई दुनिया को अब तो राह पर चलना सिखा जाओ,
अपनी सहनशीलता, दृढ़- निश्चयता,
वीरता, सौम्यता, दयालुता आदि
अनेक गुणों को एक ही आत्मा में संजोना सिखा जाओ।
राम मंदिर में बसो न बसो
मेरे हृदय में बस जाओ।
