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Shailaja Bhattad

Abstract

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Shailaja Bhattad

Abstract

राखी

राखी

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दुआओं के समंदर में बनती है राखी।

रेशम के धागों में महकती है राखी। 

कलाई की शोभा में अदब से झुकती है राखी।

प्यार के बंधन का अभिनंदन करती है राखी।

महताब में आफताब-सी रोशनी लाती है राखी।


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