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Sudhir Srivastava

Abstract

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Sudhir Srivastava

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राखी महोत्सव

राखी महोत्सव

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एक अरमान मुझे भी था 

जब से होश सँभाला,

सोचता था हर साल राखी पर,

काश! मैं भी होता एक बहन वाला।

पर शायद मेरा भाग्य ऐसा नहीं था

या ईश्वर मुझसे रुठा था।

पर मैं पूरी तरह ग़लत था

ईश्वर की व्यवस्था पर मुझे

शायद भरोसा ही नहीं था,

तभी तो दुखी रहता था।

पर वाह ये ईश्वर तूने तो कमाल कर दिया

कहाँ एक बहन के लिए आँसू बहाता रहा

आज बहनों का पूरा संसार दे दिया,

बहनों की राखियों भंडार सौंप दिया।

आज मेरी कलाई जैसे छोटी पड़ रही है

बहनों की राखियों की संख्या हर साल बढ़ रही है,

मेरी देखी, अनदेखी बहनों की अनगिनत दुआएं

मेरी जिंदगी की ढाल बन गईं।

एक राखी की चाहत में दुबला हो रहा था

आज बहनें और उनकी राखियां

मेरे जीवन का आधार बन गईं

रक्षाबंधन पर्व अब तो मुझे

राखी महोत्सव सा आभास दे रहीं। 



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