राखी और समाज
राखी और समाज


जिसके बिना मेरे दिल का हर जज़्बात सूना है,
पर क्या करूँ आज राखी पर मेरा हाथ सूना है!
चहक उठती है आँगन की हर फुलवारी उस से,
मेरे जीवन के सारे गम और हँसी, सारी उस से!
बहन न हो तो समझ लो इस घर का हरेक कोना,
और ज़िन्दगी से जुड़ा हुआ हरेक जज़्बात सूना है!
आज क्या हुआ कि मासूम बहनों को मारा जा रहा है,
बड़ी निर्दयता से उन्हें मौत के घाट उतारा जा रहा है!
लड़की खर्चा बढ़ाएगी और लड़का बढ़ाएगा कुल-वंश,
इसी सोच से समाज में पल्लवित है हत्या का विष-दंश!
बिन माँ और बहन के जिन्दगी न पलती और बढती है,
स्त्री हो किसी रूप में, बिना इनके आदमजात सूना है!