क़लम बनी है सारथी ।
क़लम बनी है सारथी ।
ख़यालो के समुद्र में
क़लम बनी है सारथी ।
दिमाग़ में उलझें हुए
किताबों में सुलझ गए ,
ख़याल ही तो हैं जो
गाथाओं में लिपट गए ।
कभी इश्क़ की शायरी
कभी टूटे दिलों की ग़जल सजी ,
ख़याल पिरोना आ गया
तो गीतों की माला बनी ।
जमीं से आसमाँ का
बादलों से बारिश का ,
ख़याल ही वज़ह है
कदमों से उड़ान का ।
दुःख का भी ख़याल है
सुख का भी ख़याल है ,
जीवन से मृत्यु तक
ख़याल का ही जाल है ।
क़िताबों में लिख जाऊँगा
चित्रों में सज जाऊँगा ,
कोरा हूँ ख़याल मैं
हर स्याही का बन जाऊँगा ।
भावनाओं के शहर में
जिंदगी आसान न थी ,
खयालो के समुद्र में
क़लम बनी है सारथी ।