प्याला
प्याला
बेहतरीन हुआ, मिल गया तुझमें
फरियाद नदियों से थी
तालीम को मंजूरी मिली
और
दुआ मंदिर में जाकर पूरी हुई।
मैं गैरों में झाँकता रहा
वतन पाक - सा और
मेरा नक्शा कहीं तुझमें
छुपा का छुपा रह गया।
हरम जुबाँ की बुँदेर होती है
प्यार से मेरा नाम लेती रहना
कहीं गीता पाक बना बैठा तुझे
तो रास के भाव से छू नहीं पाऊंगा
बादलों - सा इश्क़ कर बैठी है मुझसे
मैं कहाँ सूखी ज़मीन - सा
और जो किसी पतझड़ में
<p>टूटकर अलग हुए, खुदाया बहुत याद आओगी।
लश्कर मेरे इरादों में कहीं
मदहोश प्याले पीता रह गया होता
पर बेहतरीन हुआ, मिल गया तुझमें
अब ज़रा हुस्न का जाम घोल दे
और
प्यालो - सी झलक उठ
रह - गुज़र बसेरा बना लूंगा तुझमें
और गैरों में झांकना बंद कर दूंगा
मंदिर - सी हो भले तू
अपनी कुरान और नमाज़
तुझी में गा लूंगा
बस मेरे मदहोश प्याले
खाली छोड़े मत चली जाना
कहानी का सार
अधूरा अच्छा नहीं लगता।।