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MANSVI PRAJAPATI

Tragedy

4.8  

MANSVI PRAJAPATI

Tragedy

कलयुग का अंत

कलयुग का अंत

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क्या अब भी नहीं आया कलयुग का अंत ?

अब तो कृष्ण भी हार गए द्रोपदी की मदत करते - करते 

कानून से अब अपराधी नहीं डरते      

पड़ गए है पैरो में छाले न्याय के लिए फिरते-फिरते।

क्या अब भी नहीं आया कलयुग का अंत ?


          

अब तो पैसा देश से बड़ा है

महिला का सम्मान केवल वाद - विवाद में फसा है

गरीब ना जाने कब से अधिकार की

लड़ाई में अकेला खड़ा है।

क्या अब भी नहीं आया कलयुग का अंत ?


जो माँ जन्म देकर उपकार करती है

उसी का तिरस्कार अब संतान करती है।

श्रवण के देश के माता-पिता

अब आँखे होते हुए भी

अन्धो जैसे लाचार है।


स्त्री की आज़ादी बस छोटे कपड़े

पहनने तक सीमित रह गयी

रामायण का पाठ इस नवयुग में पिछड़ी बातें हो गई।

क्या अब भी नहीं आया कलयुग का अंत ?


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