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Goga Khullar

Abstract

4.8  

Goga Khullar

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पुराने दोस्त ।

पुराने दोस्त ।

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चलो आज किसी पुराने दोस्त की घंटी बजाते हैं ।

 चौराहे पर फिर से महफ़िल जमाते हैं ।।

 चलो आज किसी पुराने दोस्त की घंटी बजाते हैं ।


 रूठ गया था जो यूं ही, बरसों पहले ।

आज उसे सब मिलकर ‌मनाते हैं ।

 और उसकी बे‌सिरपैर की‌ बातों पर ।

 जोर जोर से कहकहे लगाते हैं ।।

चलो आज किसी पुराने दोस्त की घंटी बजाते हैं ।


ना जाने कितना बड़ा महल हो गया है उसका।

शायद मुरीद, पूरा शहर हो गया है उसका । 

चलो उसे आज जमीन पर लाते हैं।।

और फिर से गुमठी की चाय पिलाते हैं ।

चलो आज किसी पुराने दोस्त की घंटी बजाते हैं ।


इंतजार कर रहा होगा आज भी हमारा ।

जो समझता था हर एक इशारा।

अब गाड़ियों के काफिले हांकते हुए थक गए हैं।

आज फिर से उस चक्के के साथ दौड़ लगाते हैं ।

चलो आज किसी पुराने दोस्त की घंटी बजाते हैं ।।

कितनी कहानियां कितने ही किस्से, 

अधूरे रह गए थे ।

और हम ना जाने कब 

तरक्की की बाढ़ में बह गए थे ।

किसी डरावने पेड़ के नीचे ‌बैठ कर।

चलो फिर से भूतों के किस्से सुनाते हैं ।।

चलो आज किसी पुराने दोस्त की घंटी बजाते हैं।।


बड़ा ही रुतबे दार है, यार अपना ।

कुछ इसी तरह का है प्यार अपना ।

होगा विशेष दर्जा उसके नाम के साथ ।

चलो आज उसे *छपरी* बुलाते हैं ।।

चलो आज किसी पुराने दोस्त की घंटी बजाते हैं ।।


सज संवर के रहना सीख लिया तो क्या । 

बनावटी हंसी हंसना सीख‌ लिया तो क्या ।

असली हंसी वापस लाने के लिए ।

आज उसे छुप कर मुंह चिढ़ाते हैं ।।

चलो आज किसी पुराने दोस्त की घंटी बजाते हैं ।।

चौराहे पर आज फिर से महफ़िल जमाते हैं ।।

चलो आज किसी पुराने दोस्त की घंटी बजाते हैं ।।



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