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Mani Loke

Tragedy

4.5  

Mani Loke

Tragedy

पुकार

पुकार

2 mins
250


कृष्णा कृष्णा तुझे पुकारुं, क्या तू भी, मुझ को छोड़ चला रे।

क्या द्रौपदी ही तुझ को प्रिय है, क्या वेदना 'निर्भया 'की तुझको अप्रिय है।

कृष्णा क्यों अपने भक्तों में, तू करता भेद भाव रे,

इज़्ज़त क्या केवल द्रौपदी की, तुझ को सरोकार है।


नारी इस युग में भी पीड़ित है,उस युग मे भी प्रताड़ित थी,

आज निर्भया अकेली है, कल कृषणा तेरे साथ थी।

दुर्योधन हो या धर्मराज, औरत को माने वस्तु और चले चाल।

कलयुग में भी देखो कृष्णा, ये मानव खेले प्रीत का पासा और करे इज़्ज़त पर वार।


इंसानों के भीड़ में नारी,लड़ती पगपग बारम्बार।

कभी अपने वज़ूद के खातिर, कभी इज़्ज़त पर होता जो वार।

अबला नही सबला इस युग की,

पर छली जाती हर पापी से बारम्बार।


वेदना इसकी कोई न जाने,करते सब इसका ही संहार।

कृषणा देखो तेरी गोपी, कलयुग में क्या सहती है।

राधा रूक्मिणी हो या सीता सब एक जैसी ही झेलती हैं।

आज का गोपी प्रेम जाल में, फासे अपनी ही राधा को।


अपने संग औरों को भी भोग चढ़ाये राधा को।

क्यों कृष्णा कलयुग में, तेरा प्रकोप न चलता है ।

क्या द्रौपदी ही तुझे प्रिय है, क्या नारी केवल अबला है।

वेश भूषा का दोष देते ये देखो, क्यों फिर बलात्कार नवजात का होता है।


पीड़िता को ही दोषी माने, क्या समाज की ये प्रगतिशीलता है।

कृष्णा कृष्णा, अब तो, आके अपने चमतकार दिखा जा,

अपनी सखी सा मान, हर स्त्री की इज़्ज़त बचा जा।

 चीर हरण करने से पहले, चक्र तेरा जो चल जाये।

हर पापी तब, संभल संभल कर अपने कुकर्म घटाए।


इसी आस में तुझे पुकारूँ, मैं तुझको हे पालनहार।

कृष्णा कृष्णा तुझे पुकारूँ, कर दे अब पापियों का संहार।


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