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Dr Priyank Prakhar

Abstract

4.5  

Dr Priyank Prakhar

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पटरी किनारे की ये बस्तियां-१

पटरी किनारे की ये बस्तियां-१

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देखो पटरी के किनारे की ये बस्तियां,

उघड़े दरवाजे झांकती बंद खिड़कियां,

नंग धड़ंग बच्चों संग रंग बिरंगी तितलियां

कूड़े के ढेर पर ही सही, हैं बिंदास जिंदगियां।


बेढ़ब बेतरतीब कच्ची पक्की अधबनी झुग्गियां,

पाल रखे हैं कुत्ते बकरी और कुछ ने मुरगियां,

कुछ ढंकी टाट से‌ कुछ पर हैं टीन की पट्टियां,

कुछ है बन चुकी कुछ पर अभी लगी है बल्लियां।


घूमते इधर और उधर लोटते पोटते कुत्ते सूअर,

थोड़ा उधर थोड़ा इधर, कीचड़ से हैं तर-बतर,

इन बस्तियों के खूब भीतर, पर जाओ जिधर,

हमारे शहरों से तो कम ही है यहां सिसकियां।


कहीं गूंजती अजान है, तो कुछ में बज रही है घंटियां

पहने हैं कुछ ने हैट भी, कुछ पहनते हैं रंगीन पगड़ियां,

कुछ पर हैं झंडे हरे, तो कहीं सजी हैं केसरी झण्डियां,

पर गरीबी के एक ही रंग में, हैं रंगी ये सारी बस्तियां।


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