पत्ती
पत्ती
जितना भर हो सकती थी
उतना भर हो गई पत्ती।
उससे अधिक हो पाना
उसके बस में न था।
न ही वृक्ष के बस में
जितना काँपी वह पत्ती।
उससे अधिक काँप सकती थी
यह उसके बस में था।
होने और काँपने के बीच
हिलती हुई वह एक पत्ती थी।।
